Welcome to Real Ghost Stories(भूतो की कहानियाँ )
Mano Ya Na Mano Release on dated 23rd August 2012, Real Ghost Stories (भूतो की कहानियाँ )Mano Ya Na Mano providing a fresh source of first hand images,information,and research into the world of the paranormal,it contains an ever growing collection of first hand, true ghost stories, classic photographs and images.

Real Ghost Stories – The Devil and his demons, ghosts, vampires, ghouls, evil human and animal spirits all walk the Earth freely to this very day. The reports by psychics and common people from all corners of the planet are unanimous—Ghosts are real. Some of them are evil, cunning, and manipulative while others are benign.

Do YOU believe in Ghosts? Do you think we, the believers, are weird or strange? Read on and you might just assent to our belief.

We, the people who believe, know there are many unsolved mysteries in this world. Those who don't believe say there are no such things as ghosts, spirits, demons, vampires, haunting, and so on, but rather strangely, will likely never agree to sleep alone in a graveyard at night. And some are even paranoid of the dark. What gives?

Well, I hope you will give me and my fellow believers a chance to convince you about the "cosmic unknown".

Since you are still here, good, at least you are curious. Or maybe, there is more to your curiosity than you care to admit. Please share with us if you dare.


Anyway, I want to thank all those who have sent me their stories. There have been hundreds of stories, and I can't possibly edit them all in the near future, so I ask you to be patient and to keep sending your stories. Some of the stories may not be featured on this website but may end up in my upcoming post.

जागते रहो वरना लगेगा थप्पड़

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अगर आपके वॉचमैन या हाउस कीपर को ड्यूटी पर सोने की आदत है तो उसे यह खबर जरूर सुनाएं। खबर सुनते ही वाचमैन की यह आदत छूट जाएगी। इस खबर में एक ऐसे भूत की कहानी है जो ड्यूटी पर सोने वाले वॉचमैन और हाउस कीपर को जोरदार थप्पड़ मारकर अलर्ट करता है।

हो सकता है कि आप इस पर यकीन न करें लेकिन खबर सोलह आने सच है। यह किसी और देश की बात भी नहीं है बल्कि अपने ही देश के राजस्थान के कोटा शहर की बात है।

कोटा में रेलवे स्टेशन से तीन किलोमीटर और एयरपोर्ट से 5 किलोमीटर की दूरी पर बसा है बृजराज भवन पैलेस। वर्तमान में यह एक हैरिटेज होटल है। इस होटल के कर्मचारी एवं कई पर्यटकों ने अनुभव किया है कि इस होटल में एक ब्रिटिश मेजर की आत्मा भटकती है। यह आत्मा किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती बल्कि पैलेस की निगरानी करती है।

इस मेजर की आत्मा को सिर्फ एक चीज बुरी लगती है वह है ड्यूटी के समय वॉचमैन और हाउस कीपर का सोना। बृजराज भवन पैलेस में भटकती हुई आत्मा जब भी इन्हें ड्यूटी पर सोते अथवा स्मोकिंग करते हुए देखती है एक जोरदार थप्पड़ लगाती है।

ऐसी मान्यता है कि 1857 में सिपाही विद्रोह के समय इस पैलेस में एक ब्रिटिश रेजिडेंट मेजर चार्ल्स बुर्टन रहता था। विद्राहियों ने इस पैलेस पर आक्रमण कर दिया। चार्ल्स बुर्टन के दो बेटे भी इस समय उसके साथ थे। कुछ सैनिकों के साथ इन तीनों ने काफी समय तक विद्रोहियों का मुकाबला किया लेकिन विद्रोहियों ने इन्हें पराजित कर दिया।

चार्ल्स बुर्टन विद्रोहियों के हाथों मारा गया। इस समय से ही ब्रिटिश रेजिडेंट मेजर चार्ल्स बुर्टन की आत्मा इस पैलेस में भटक रही है। बृजराज भवन पैलेस के कुछ कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने मेजर भी आवाज सुनी है।

Haunted Hostel

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Haunted Hostel.
Haunted Hostel.
From MTV GNO - Haunted Hostel.

Playground of Evil Spirits in - Pune

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Playground of Evil Spirits in - Pune
Playground of Evil Spirits in - Pune
This is from a recent investigation that we arranged at a property in Pune. It is said to be cursed

and a playground of evil spirits. Who ever purchases this property; meets his end soon. The

strangest fact of all was that the recent owner, Real Estate Agent(who sold this property to the new

owner), And the Priest (who was on his way to perform Grih-Pravesh Pooja (Cerenmony) at the

property) died on the same day ; at different venues. Do you think this was just a co-incidence or it is really something Extra-ordinary??

Bhangarh

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Bhangarh
Bhangarh
Location: Northeast of Jaipur (115 kms from Jaipur)
Highlights: Old Fort Famous For Ghosts.
Area:
Population:
Altitude:
Languages: Hindi,Rajasthani
Best Time to Visit: October to March
STD Code: 0144
Climate:
Summer: 37ºC (max) 24ºC (min)
Winter : 31ºC (max) 07ºC (min)

Located at a distance of around 80 kms from the main city of Alwar, Bhangarh is a mysterious town for its visitors. Being an excavated town away from the bustling city life, Bhangarh in Alwar is a favorite destination for the tourists arriving in the city. The excavated city of Bhangarh is connected to Alwar via Sariska by a road where you can savor nature””””s gift of beautiful surroundings.

There is no chronological evidences about the history of the town but it is said that Bhangarh was earlier a flourishing city. The king of Sindh wanted to avenge his embarrassment before the queen of Bhangarh. So he gave up his kingdom and started practicing black magic and other similar acts in Bhangarh. Later the city was destroyed in the conflict between the queen of Bhangarh and the erstwhile king of Sindh. It is believed that the entire city was destroyed overnight after the king of Sindh died cursing the city and its people.

Bhangarh in Alwar is associated with a number of myths. It was believed that black magic prevailed in the entire area and who so ever went there did not come back. For this reason, the area was left barren for a long time. After the area was excavated and the ruins of the ancient town of Bhangarh emerged, the locals dropped the fear and started going to the place. Still some people believe that evil spirits and ghosts inhabit the town.

People say that nobody returned from there who stayed there after dark.


If you had a real paranormal experience related to ghosts and hauntings, share it !!

बृज राज भवन (कोटा)

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बृज राज भवन (कोटा)
बृज राज भवन (कोटा)
बृज राज भवन (कोटा) – 1857 की लड़ाई में ब्रिटिश सैन्य अफसर मेजर बर्टन की हत्या इसी महल में की गई थी जिसकी आत्मा रात के समय यहां भटकती है और चौकीदारों को परेशान करती है.

डिसुजा चाल (मुंबई)

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डिसुजा चाल (मुंबई)
डिसुजा चाल (मुंबई)
डिसुजा चाल (मुंबई) – माहिम, मुंबई में स्थित डिसुजा चॉल के पास एक कुआं है. कहा जाता है कि इस कुएं में पानी भरते हुए एक महिला डूब कर मर गई थी. आज भी उस महिला की आत्मा उस कुएं और चॉल में घूमती है. वह किसी को परेशान नहीं करती लेकिन उसे अभी तक मुक्ति नहीं मिल पाई है.

डॉ हिल्स (पश्चिम बंगाल)

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डॉ हिल्स (पश्चिम बंगाल)
डॉ हिल्स (पश्चिम बंगाल)
डॉ हिल्स (पश्चिम बंगाल) – इस घने जंगल में ना जाने कितनी ही हत्याएं हो चुकी हैं. स्थानीय लोगों ने कई बार यहां अजीबोगरीब चीजें महसूस की हैं. विक्टोरिया ब्वॉयस स्कूल में छुट्टियों के दिनों में हलचल और लोगों की आत्माओं की उपस्थिति दर्ज की गई है.

शनीवारवाडा किला (पुणे)

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शनीवारवाडा किला (पुणे)
शनीवारवाडा किला (पुणे)
शनीवारवाडा किला (पुणे) – जब पश्चिम भारतीय प्रांत पर पेशवाओं का अधिकार था उस समय पेशवाओं के उत्तराधिकारी नारायण नामक बालक की उसके चाची के आदेशानुसार हत्या करवा दी गई थी. अपनी जान बचाने के लिए नारायण पूरे महल में घूमता रहा लेकिन फिर भी उसके हत्यारों ने उसे ढूंढ़ कर मार डाला. वह अपने चाचा को आवाज लगाता रहा पर कोई उसकी मदद के लिए नहीं आया. स्थानीय लोगों ने आज भी कई बार उसकी कराहने की आवाजें सुनी हैं. चांदनी रात में वह जगह और अधिक भयानक हो जाती है.

सवॉय होटल (मसूरी)

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सवॉय होटल (मसूरी)
सवॉय होटल (मसूरी)
सवॉय होटल (मसूरी) – अंग्रेजी शासन काल में इस होटल में एक ब्रिटिश लड़की की हत्या की गई थी जिसकी आत्मा आज भी अपने हत्यारे को ढूंढ़ रही है. इस स्थान को सीरियल किलिंग से भी जोड़कर देखा जाता है लेकिन अधिकांश लोगों का मानना है कि इन हत्याओं के पीछे उसी लड़की लेडी ऑर्मे का हाथ है.

राज किरन होटल (मुंबई)

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राज किरन होटल (मुंबई)
राज किरन होटल (मुंबई)
राज किरन होटल (मुंबई) – लोनावला, मुंबई स्थित राज किरन होटल में एक कमरा आत्माओं की चपेट में है. जिन लोगों ने वहां रहने की हिम्मत दिखाई है उनका कहना है कि रात के समय कोई उनकी चादर खींचता है और अजीबोगरीब आवाजें निकालता है. कभी-कभार उन्हें घायल करने की कोशिश भी की गई है.

रामोजी फिल्मसिटी (हैदराबाद)

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रामोजी फिल्मसिटी (हैदराबाद)
रामोजी फिल्मसिटी (हैदराबाद)
रामोजी फिल्मसिटी (हैदराबाद) – यह स्थान कुख्यात और अमानवीय सैनिकों का कब्रिस्तान है. यहां उनकी आत्मा आज भी भटकती है. मृत सैनिक यहां आने वाले लोगों को बहुत परेशान करते हैं. कई बार लाइटमैन और कैमरा मैन गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं. स्थानीय लोग यहां आने से घबराते हैं लेकिन व्यवसाय को हानि ना पहुंचे इसीलिए आत्माओं की कहानियों को निराधार बताता जाता रहा है.

दुमास बीच (गुजरात)

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दुमास बीच (गुजरात)
दुमास बीच (गुजरात) – इस बीच पर हिंदुओं के शवों का दाह-संस्कार किया जाता है. यहां कई बार असाधारण और हॉरर गतिविधियां महसूस की गई हैं. यहां आने वाले लोगों को अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देती हैं जबकि आस-पास कोई नहीं होता. ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में हर ओर मरे हुए लोगों की उपस्थिति रहती है.

भानगढ़ का किला (राजस्थान)

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भानगढ़ का किला (राजस्थान)
भानगढ़ का किला (राजस्थान) – यूं तो भारत में ऐसे कई स्थान हैं जिन्हें आप हॉंटेड या भूतहा कह सकते हैं लेकिन उनमें से सबसे ज्यादा भयानक है भानगढ़ का किला. इस किले के भूतहा होने पर अब किसी को कोई संदेह नहीं है. वैसे तो यह एक पर्यटन स्थल है लेकिन सरकार की ओर से भी यहां अंधेरा होने से पहले पर्यटकों के चले जाने की चेतावनी जारी कर दी गई है.

लोगों का मानना है कि बहुत समय पहले यहां रत्नावती नाम की बहुत सुंदर

राजकुमारी रहती थी जिस पर काला जादू करने वाले तांत्रिक की कुदृष्टि थी. तांत्रिक ने अपने जादू से राजकुमारी को अपने वश में कर उसका शारीरिक शोषण किया. लेकिन एक दुर्घटना के चलते उस तांत्रिक की मृत्यु हो गई और आज भी उस तांत्रिक की आत्मा वहीं भटकती रहती है. तांत्रिक के श्राप के अनुसार वह स्थान कभी भी बस नहीं सकता. वहां रहने वाले लोगों की मृत्यु हो जाती है लेकिन उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती.

भानगढ़ में ही नहीं और भी जगह है आत्माओं का बसेरा!!

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वैसे तो भूत-प्रेतों वाली कहानियां सभी को बहुत रोमांचित करती हैं लेकिन अगर कभी यह कहानियां हकीकत का रूप ले लें तो कठोर से कठोर व्यक्ति भी कांपने लगता है. अगर कभी आपका सामना किसी भटकते प्रेत या आत्मा से हो जाए तो आपकी हालत क्या होगी, इस बारे में सोचकर ही सिहरन सी होने लगती है. किस्से कहानियों में तो आपने भूत-प्रेत या भटकती आत्माएं देखी होंगी लेकिन भारत में भी ऐसे कई स्थान हैं जहां आप भूलकर भी जाना पसंद नहीं करेंगे. ऐसे स्थान जो हजारों वर्षों से एक भयानक श्राप को झेल रहे हैं और जो पूरी तरह भटकती आत्माओं की चपेट में हैं.

West Bengal - Kurseong - Dow-Hill

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भारत की सबसे खतरनाक और डरावनी इमारतें 

West Bengal - Kurseong - Dow-Hill - The forests have an uncanny feeling. Its damp, cold and sometimes dark. People up here tend to be depressed and countless murders have taken place. On the stretch between Dow-Hill road and the Forest Office, wood cutters returning in the evenings have sited a young boy walking head-less for several yards and then walk away from the road into the woods. Other than this, footsteps are heard in the corridors of the Victoria Boys School when the school is closed for long holidays from December to March.

अमेरिका मे भूत पिचास और झाड़-फूक का त्योहार

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Shadow of the Mad King – October 2012
प्रत्येक साल अक्टूबर महीने के अन्तिम सप्ताह से अमेरिका मे त्योहारोँ का दौर शुरु हो जाता है. पहला त्योहार आता है हैलोविन, फिर थैन्क्स गिविँग और उसके बाद क्रिश्मस और नया साल. आपने हैलोविन के अलावा सभी त्योहारोँ का नाम सुन रखा होगा. और आपको ये जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि हैलोविन एक ऐसा त्योहार है जिसमे अमेरिकन लोग भूत-प्रेतोँ की पूजा (झाड़-फूक) करते हैँ. यदि सँस्कारित शब्दोँ मे बोलेँ तो यह पूजा करना ही है लेकिन यदि असलियत मे बोलेँ तो यह झाड़ फूक से ज्यादा कुछ नही है. और इस झाड़ फुक के लिए आफिस से बकायदा छुट्टी मिलता है. लेकिन अमेरिकन ठहरे पहले दुनियाँ के लोग. वो ये बात कैसे मानेँगे कि अमेरिका मे भूत प्रेत और जादू टोना होता है.

मैने लिटरेचर खँगालने की कोशिश किया कि आखिर बात क्या है? तो पाया कि, प्राचीन समय से हैलोविन त्योहार के समय मरे हुए लोगोँ की आत्मा को शाँत करने के लिए ऐसा पूजा किया जाता है.

विकीपीडिया के अनुसार "यह एक ऐसी अवधारणा है जिसमे यह माना जाता है कि अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह मे इस पृथ्वी लोक मे और स्वर्ग-नरक लोक मे दूरी कम हो जाती है. ये दूरी इतनी कम हो जाती है कि स्वर्ग लोक से अपने अच्छे अच्छे पूर्वज के साथ नरक लोक के भूत, प्रेत और पिचाश पृथ्वी लोक पर विचरण करने लगते हैँ. अमेरिकन लोग अपने पूर्वजोँ के आत्मा का तहे दिल से स्वागत करते हैँ और इसी खुशी मे इस हैलोविन को त्योहार की तरह मनाते हैँ, खुशियाँ मनाते हैँ. लेकिन भूत, प्रेत और पिचाशोँ को भगाने के लिए जादू टोना करते रहते हैँ.

जादू टोना के लिए तरह तरह का हरकत करते हैँ और इसमे सबसे बड़ा काम आता है कद्दू (pumpkin). काद्दू को काटकर उसमे आँख और मुँह के आकार का डिजायन बनाया जाता है. बाँकी चीजोँ को नारँगी और काले रँग से सभी चीजोँ को सजाया जाता है. प्रेतोँ और पिचासोँ को भगाने के लिए बच्चे बुढ़े अजीब अजीब रँग के कपड़े पहनते हैँ. हलाँकि अधिकतम डिजायन काले और नारँगी रँग से होता है.

DOWNLOAD FACEBOOK GHOST COVER

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Graphic's Art Work  by Page Admin

GHOSTS EXIST!!! do you believe now?

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Man is killed in train accident. After his death, he makes THIRTY FIVE (35!!!) phone calls from his mobile to his family. THIRTY FIVE!!! calls from the DEAD!!!! how he did it remains Unexplained!!!

All this happened in 2008!!!

GHOSTS EXIST!!!
do you believe now?

टिटलागढ़ की एक रात

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बात कई साल पुरानी है .जब मेरी नयी नयी नौकरी नागपुर में लगी थी .मैं एक सेल्समेन था और मुझे बहुत टूर करना पड़ता था. मार्च महीने के दिन थे . दोपहर का वक़्त था और तेज गर्मी से मेरा बुरा हाल था . बुरा हो इन इलेक्ट्रिसिटी डिपार्टमेंट वालो का , कम्बक्तो ने उस दिन बिजली काट रखी थी .मेरा दिमाग बहुत ख़राब था .

अचानक मेरे फ़ोन की घंटी बजी , मेरा खराब मन और चिडचिडा हो गया . एक तो उमस भ

री गर्म हवाये खिड़की से आकर हाल खराब किये जा रही थी और ऊपर से ढेर सारा काम , मार्च का महिना , टारगेट चेसिंग , एक सेल्समेन की ज़िन्दगी कितनी बेकार हो सकती है , ये तो कोई मुझसे आकर पूछे. फ़ोन की घंटी लगातार बज रही थी . मुझे पक्का विश्वास था की ये जरुर मेरे बॉस का होंगा , मुझे कोई न कोई काम दे रहा होंगा.

खैर बड़े ही अनमने मन से फ़ोन उठाया और कहा, "हेलो ! दिस इज राजेश फ्रॉम सेफ्टी प्रोडक्टस प्राईवेट लिमिटेड .”

उधर से बॉस की खरखराती हुई आवाज आई , " राजेश , तुम आज के आज ही टिटलागढ़ में जाकर वहां के स्टील प्लांट में परचेस ऑफिसर से मिलो . मैं फैक्स भेज रहा हूँ सारी डिटेल्स उसी में है . "
मैंने मिमियाते हुए कहा , " सर बहुत काम है , अगले हफ्ते चले जाऊं ? "

बॉस ने बहुत प्यार से कहा , " नो डिअर , अगले हफ्ते कोई और काम दूंगा , गो गेट इट डन एंड रिपोर्ट मी सून ! "

फ़ोन कट गया और मेरा दिमाग और ख़राब हो गया !

कुछ दोस्तों को फ़ोन किया तो पता चला कि टिटलागढ़ जाने का एक ही रास्ता है और वो है ट्रेन से .. मुझे रायपुर के पास दुर्ग जाना होंगा और वहां से दुर्ग से विशाखापट्नम तक एक पसेंजर ट्रेन जाती है , जो रात को टिटलागढ़ पहुंचाती है .

मैं सोच ही रहा था कि फैक्स आ गया . उसमे उस स्टील कंपनी की डिटेल्स थी और उस परचेस ऑफिसर की डिटेल्स दी गयी थी और उस कंपनी की जरुरत की इंस्ट्रुमेंट्स की डिटेल्स दी गयी थी . पढ़कर लगा कि ये तो १००% सेल्स है , मेरा टारगेट कुछ और पूरा हो जाता . ख़ुशी की बात थी .

मैंने जाने का फैसला कर लिया . और समय देखा तो दोपहर के १२ बज रहे थे. रेलवे स्टेशन में फ़ोन करके ट्रेन्स की बाबत पता किया तो एक ट्रेन थोड़ी ही देर बाद थी , जो कि मुझे दुर्ग शाम ५ बजे तक पहुंचा दे सकती थी . फिर वहां से शाम को 7 बजे दूसरी गाडी. मतलब मुझे अभी ही निकलना होंगा, यही सोचकर सारी पैकिंग कर लिया [ वैसे भी एक सेल्समन का बैग हमेशा पैक ही रहता है ] , मैं स्टेशन निकल पड़ा .

स्टेशन जाकर देखा तो इतनी भीड़ थी कि बस पूछो मत. लगता था कि सभी को बस कहीं कहीं न हमेशा जाना ही होता है . स्टेशन में ही आकर पता चलता है कि हमारी जनसँख्या बढती ही जा रही है .मेरी ट्रेन जो बॉम्बे से हावड़ा जा रही थी वो प्लेटफोर्म पर आ चुकी थी , टिकट लेकर बैठ गया. थोड़ी देर बाद टिकट कलेक्टर बाबू आये तो उन्हें खुशामद करके एक रिजर्वेसन की बर्थ ले ली और उस पर पसर कर सो गया ये सोच कर कि क्या पता रात को नींद मिले या नहीं . थोड़ी देर बाद ही किसी ने उठाया कि बाबु जी , आपका स्टेशन आ गया . बाहर देखा तो दुर्ग स्टेशन का बोर्ड लगा हुआ था .

खैर , बाहर आया , थोड़ी पूछताछ की तो पता चला कि दुर्ग -विशाकापटनम पैसंजर गाडी शाम ७ बजे निकलेंगी . मैंने घडी देखा , करीब डेढ़ घंटे का समय था. मैं ने ये सोचा कि पता नहीं रात को वहां टिटलागढ़ में मुझे कुछ खाने को मिलेंगा या नहीं . अभी ही कुछ खा पी लेता हूँ . स्टेशन के बाहर एक ढाबा था , उसी में बैठकर दाल रोटी खा ली , और एक ग्लास लस्सी पी ली , पेट भर गया . और रात के लिए एक टिफिन बंधवा लिया . और एक थम्प्स अप कोला की बोतल लेकर , उसे आधा पी लिया और फिर उसमे रम मिला दिया [ कोला में सोमरस मिलकर सफ़र करना हर एक योग्य सेल्समन की निशानी है ]...ये कोकटेल सेल्समेन के पास हमेशा ही रहती है .अब मैं अगली यात्रा के लिए तैयार था .

टिटलागढ़ की टिकट लेकर प्लेटफोर्म पर जाकर बैठा . ट्रेन को आने में समय था , सोचा एक किताब खरीद लूं. वहां बुक स्टाल में देखा तो नयी वाली मनोहर कहानिया थी और ब्रोम स्टोकर की ड्रैकुला थी , दोनों ले लिया , उस वक़्त में ये दोनो ही किताबे बड़ी चलती थी . ड्रैकुला मैंने पढ़ा नहीं था , यारो ने बड़ी तारीफ़ की थी , इस लिए इसे खरीद लिया . और हम सेल्समेन के लिए मनोहर कहानिया , बहुत बड़ा टाइम पास हुआ करता था उन दिनों .

खैर थोड़ी देर में हर स्टेशन की तरह इस स्टेशन पर भी लोगो का सैलाब आ गया , चारो तरफ खाने पीने के ठेले और लोगो की भीड़ , फिर धीमे धीमे चलती हुई ये पसेंजर ट्रेन आई , ट्रेन के आते ही लोग टूट पड़े , जिसको जहाँ जगह मिली , वहां सवार हो गया , मैं भी एक डिब्बे में घुस पड़ा और एक खिड़की की सीट हथिया ली. , पूरी ट्रेन लोगो, मुर्गियां और बकरियां , खाने पीने की चीजो और अलग अलग आवाजो से भर गयी . भारत की रेलगाड़ियाँ और उनका सफ़र कुछ ऐसा ही होता है .

खैर ,ट्रेन शुरू हुई और हर जगह रूकती हुई अपने मुकाम पर चल पड़ी , मैंने अपनी थम्प्स अप की बोतल से धीरे धीरे कोला +सोमरस की चुस्कियां लेनी शुरू की और मनोहर कहानियां को पढने के लिए निकाला . ये भूत-प्रेत कथा विशेषांक था. मुझे इस तरह की कहानिया और फिल्मे बड़ी पसंद आती थी . कुछ कहानिया पढ़ने के बाद देखा तो रात हो चली थी . ट्रेन पता नहीं कहाँ रुकी थी , बहुत से मुसाफिर ऊँघ रहे थे , कुछ सो ही गए थे , कुछ बातो में मशगुल थे. मैंने घडी देखी, रात के करीब १० बज रहे थे., मैंने बैग में से अपना टिफिन निकाला और खाना शुरू किया , ये टिफिन मैंने दुर्ग में ढाबा से बंधवा लिया था. खाने के बाद, फिर धीरे धीरे चुस्की लेते हुए मैंने अब ड्रैकुला किताब पढनी शुरू की . ये एक जबर्दश्त नॉवेल था. बहुत देर तक पढने के बाद मैंने देखा घडी रात के १:३० बजा रही थी . मेरा स्टेशन अब आने ही वाला था. आस पास के मुसाफिरों से पुछा तो पता चला की ट्रेन थोड़ी लेट है और करीब २ बजे तक पहुंचेंगी . मैंने अब अपना बैग बंद किया और इन्तजार करने लगा उस स्टेशन का , जहाँ मैं पहली बार जा रहा था और नाम से ही ये कुछ अजीब सा अहसास दे रहा था. टिटलागढ़ , भला ये भी कोई नाम हुआ. खैर , अपने देश में तो ऐसे ही नाम मिलेंगे गाँवों के और शहरो के.

करीब २:१५ पर मेरा स्टेशन आया . मैं उतरा और चारो तरफ देखा , एक अजीब सा सन्नाटा था. कुछ लोग मेरे साथ उतरे और बाहर की ओर चल दिए. मैंने सोचा अब किसी होटल में जाकर रात काट लेता हूँ और सुबह स्टील प्लांट में जाकर काम पूरा कर लूँगा. स्टेशन में एक टीटी दिखा उससे पुछा कि यहाँ कोई होटल है आस पास, उसने हँसते हुआ कहा , " साहेब , ये छोटी सी जगह है यहाँ कौनसा होटल मिलेंगा , आप तो यही वेटिंग रूम में रात गुजार लो और कल जहाँ जाना हो , वह चले जाना ."

मैंने सोचा वेटिंग रूम में रात गुजारने से बेहतर है कि मैं एक कोशिश कर ही लूं होटल ढूँढने की . रात भर नींद आ जाए तो दुसरे दिन का काम कुछ बेहतर होता है . मैं स्टेशन के बाहर पहुंचा , देखा तो मरघट जैसा सन्नाटा था , दिन का गर्मी का मौसम अब कुछ सर्द लग रहा था , कुछ तेज हवा भी रह रह कर बह जाती थी . कहीं कोई नहीं दिख रहा था . उस नीम अँधेरे में एक छोटा सा लाइट था लैम्प पोस्ट का , जो एक बीमार सी पीली रौशनी बिखेर रहा था. मैंने कुछ दूर देखने की कोशिश की. थोड़ी दूर पर मुझे अचानक एक तांगा वाला नज़र आया ,. मैं दौड़कर उसके पास पहुंचा , वो एक बहुत पुराना तांगा था , एक मरियल सा घोडा बंधा हुआ था उसके साथ जो कि हिल भी नहीं रहा था. और तांगेवाला , पूरी तरह से एक कम्बल में बंद होकर मूर्ती की तरह बैठा हुआ था. मुझे इस पूरे माहौल में काउंट ड्रैकुला की याद आई , उसने भी कहानी की नायिका को लेने के लिए कुछ ऐसा ही तांगा भेजा था . एक सिहरन सी दौड़ गयी मेरे रीड की हड्डी में.

मैंने जोर लगाकर उस तांगेवाले से पुछा , भैय्या , अगर आसपास कोई होटल हो तो मुझे पहुंचा दोंगे क्या ? तांगेवाले ने अपने चेहरे से कम्बल हटाया , वो एक अजीब सा चेहरा था,. या चेहरा सफ़ेद सा था, या उसकी दाढ़ी थी , पता नहीं , पर मैं असहज हो उठा ,उसे देखकर ! मुझे एक अजीब से गंध आने लगी . मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो गंध कहाँ की है , पर वो कुछ जानी सी गंध थी . उसने एक धीमी सी आवाज में कहा , यहाँ कोई होटल अभी नहीं मिलेंगा ,बाबू जी , आज तो आप वेटिंग रूम में ही आराम कर लो , कल आप यही तैयार हो जाना , मैं आपको स्टील प्लांट छोड़ दूंगा . मैं एकदम चकित होकर पुछा , तुम्हे कैसे मालुम कि मैं प्लांट जाऊँगा, उसने अजीब सी हंसी हँसते हुए कहा , यहाँ सब प्लांट जाने के लिए ही आते है बाबू जी ,. उसकी हंसी मुझे , रात के उस वक़्त , उस बियाबान जगह में बहुत भयानक सी लगी , मैं कहा, ठीक है , मैं यही रुकता हूँ , मेरी बात सुनकर उस की आँखों में एक चमक सी उभरी , मेरे दिमाग में फिर काउंट ड्रैकुला फ्लैश कर गया. मैं पलट कर स्टेशन की तरफ चल पड़ा , मैंने अपने डरते हुए मन को समझाया , यार राजेश , ये सब यहाँ का माहौल और तेरी किताबो का असर है . शांत रह !! मैं कई बरसो से सेल्समन की हैसियत से सफ़र करता आ रहा हूँ , लेकिन उस रात का असर कुछ अलग ही था ,. मैं स्टेशन के भीतर घुसते हुए पीछे पलट कर देखा, वो तांगावाला अब नहीं था. कमाल है , मुझे उसके जाने की कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी , न ही घोड़े की टाप , न ही कोई और आवाज . पता नहीं, मैंने सोचा कि , लगता है , कोला और सोमरस की चुस्की कुछ ज्यादा ही हो गयी है शायद.

मैंने धीरे धीरे पूरे स्टेशन पर गौर किया , पूरा का पूरा स्टेशन ही सुनसान था. प्लेटफोर्म के अंतिम छोर पर एक छोटे से कमरे के आगे लिखा था वेटिंग रूम . मैं उसी में घुस पड़ा . देखा तो एक छोटा सा गन्दा सा कमरा था. एक पीला बल्ब जल रहा था. एक बेंच थी . उस पर एक बुढा बैठा था, उसके सामने नीचे में एक बूढी बैठी थी और साथ में दो जवान बच्चे थे . मुझे आया देखकर सबने मेरे तरफ देखा .फिर नीचे बैठे बूढी और दोनों बच्चो ने उस बूढ़े की ओर देखा . उस बूढ़े ने उनसे धीमी आवाज़ में कुछ कहा और फिर मुझे पुकारा , " आओ बाबूजी , आईये , यहाँ बैठिये. " मैं बहुत अच्छा सा महसूस नहीं कर रहा था . कुछ अजीब जी बात थी .. जो मुझे उस वक़्त डिस्टर्ब कर रही थी .. लेकिन क्या ये समझ नहीं आ रहा था. मैंने सोचा "बस राजेश यार ; कुछ घंटो की बात है , यहाँ इस वेटिंग रूम में गुजार कर कल अपना काम ख़त्म करके वापस चलते है" . मैं उस बूढ़े की ओर बढ़ा और बेंच पर बैठ गया . मुझे फिर से वही अजीब से गंध आने लगी . मैंने याद करने की कोशिश की , कि वो गंध कहाँ की है , पर कुछ याद नहीं आया. मैंने उन चारो की ओर देखा. चारो कम्बल से अपने आप को ओडे हुए थे. किसी का भी चेहरा उस कम रौशनी में दिख नहीं रहा था. माहौल में अचानक ठण्ड आ गयी थी , मैं सोच भी रहा था , मार्च महीने में ठण्ड ? मैंने उस बूढ़े से पुछा , "यहाँ का मौसम कुछ अजीब है , मार्च में ठण्ड लग रही है ?" बूढ़े ने खरखराती हुई आवाज में कहा , "बाबु जी , ये जगह चारो तरफ से पहाडियों से घिरी हुई है . इसीलिए ये ठण्ड महसूस होती है . आप कहाँ से आ रहे हो , मैंने कहा , मैं नागपुर से आ रहा हूँ ", बुढा चुप हो गया . बूढ़े ने थोड़ी देर बाद पुछा , "स्टील प्लांट के लिए आये हो ?", मैं चौंक गया , उसकी तरफ देखा तो , पहली बार उसका चेहरा देखा , एक बुढा आदमी , बहुत सी झुरीयाँ एक अजीब सा सफेदी का रंग चेहरे पर. मैंने थोड़ी सावधानी से कहा , "आपको कैसे मालुम , कि मैं यहाँ किसलिए आया हूँ ." बूढ़े ने हंसकर कहा , यहाँ सब उसी के लिए आते है ..

मुझे फिर से बहुत तेजी से वो गंध आई .. मुझे लगा मैं बेहोश हो जाऊँगा . मैं ने फिर उनसे कहा कि आप लोग कौन है , और कहाँ जायेंगे. , ये सुनकर चारो ने एक साथ मुझे देखा , उन चारो की आँखों में एक चमक आई , मैं सकपका बैठा ,. यही चमक मुझे उस तांगेवाले की आँखों में भी दिखी थी .बूढ़े ने कहा , "हम तो यही के है बेटा , हम कहाँ जायेंगे ". मैं असहज हो रहा था. मैंने अपने बैग से बचा हुआ कोला पी लिया , सिगरेट का एक पैकट निकाल कर बाहर आने की कोशिश की , लगा , नींद आ रही है , फिर मैंने उस बूढ़े से पुछा. "आपके पास माचिस है?" , ये सुनकर चारो एक दम से डर से गए , बूढ़े ने तुरंत कहा , " नहीं , नहीं , हम माचिस नहीं रखते." मैं वेटिंग रूम के बाहर आ गया ,. अब कोई गंध नहीं आ रही थी . मैं ने एक फैसला किया कि मैं बाहर ही रुकुंगा,. मैंने घडी देखी , करीब ३:३० बज रहे थे. मैं ने अपने आपको समझाया कि बस यार कुछ देर और. मैंने बैग में टटोला तो एक पुरानी माचिस मिल गयी , मैंने सिगरेट सुलगाया और पीछे मुड़कर देखा . देखा तो ठगा सा खड़ा रह गया , चारो मेरे पीछे ही खड़े थे. और मुझे देख रहे थे. मैं सकपकाया . और फिर से सिगरेट पीने लगा , फिर मैंने मुड़कर देखा तो वो चारो वेटिंग रूम के दरवाजे पर खड़े होकर मुझे देख रहे थे. मेरी सिगरेट ख़त्म हो चली थी , मैं धीरे धीरे चलने लगा फिर मैंने दूसरी सिगरेट सुलगाई और फिर देखा तो उन चारो के आँखों में एक अजीब सी चमक आ गयी थी . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था , नींद के भी झोंके भी आ रहे थे. मेरी आँखे भी रह रह कर मुंद जाती थी .

अचानक किसी ने मेरी बांह पकड़कर खींचा और चिल्लाया मरना है क्या , मैंने देखा तो एक ट्रेन आ रही थी और मैं प्लेटफोर्म के किनारे में था. अचानक ही ऐसा लगा कि बुढा मेरे पास खड़ा है और मुझे धक्का देना चाहता है . मैं घबरा कर देखा तो स्टेशन मास्टर था. उसने कहा कि बेंच पर जाकर सो जाओ . मैंने वही फैसला किया , स्टेशन पर एक बेंच थी , उस पर जाकर लेटा और सोने की कोशिश करने लगा , अब मुझे डर भी लग रहा था. अचानक करवट बदली तो देखा वही बुढा पास में खड़ा था , मैं उठकर बैठ गया , मैंने कहा , "क्या बात है , क्या चाहते हो ?" मुझे लगने लगा कि वो चोरो की टोली है , जो मेरे बैग छीनना चाहते है .

उस बूढ़े ने कहा , "यहाँ मत सोओ बेटा , वहां वेटिंग रूम में सो जाओ " .मैंने कहा कि , "मैं यही सो जाऊँगा और अगर तुम यहाँ से नहीं गए तो मैं स्टेशन मास्टर के पास तुम्हारी शिकायत करूँगा." ये सुनकर वो मुस्कराया , उसकी मुस्कराहट ने मेरी रीड की हड्डी में कंपकंपी पहुंचा दी. वो एक सर्द मुस्कराहट थी. मुझे वो गंध फिर आने लगी . वो चला गया .

उसके जाते ही मैं गहरी नींद में चला गया . कुछ देर बाद किसी गाडी की आवाज ने मुझे उठा दिया . देखा तो सुबह हो चुकी थी , रात के बारे में सोचा तो हंसी आ गयी .मैंने अपने आप से कहा , कि मैं खामख्वाह डर रहा था. मुझपर लगता था कि किताबो का असर ही हो गया था. मैंने समय देखा , सुबह के ७ बज रहे थे. सोचा कि यही वेटिंग रूम में तैयार हो जाता हूँ , और फिर स्टील प्लांट जाकर शाम की गाडी से वापस चले जाऊँगा . एक दिन के होटल के पैसे भी बच जायेंगे और इस भुतहा जगह से पीछा छूट जायेंगा.

वापस वेटिंग रूम में गया , देखा तो बहुत से लोगो से भरी हुई थी . कुछ अच्छा लगा पहली बार इतनी भीड़ को देखकर. उस बूढ़े को ढूँढने /देखने की इच्छा हुई , लेकिन वो वहां नहीं था . मैं तैयार हुआ , बाहर निकला , सोचा चाय और नाश्ता करके सीधा प्लांट चला जाऊँगा . चाय की दूकान पर जाकर चाय वाले से चाय के लिए कहा , इतने में पीछे से आवाज आई ,"हमें चाय नहीं पिलाओंगे बाबू जी ? " आवाज सुनकर जेहन को झटका लगा , मुड़कर देखा तो वही बुढा ,बूढी और दोनों बच्चे थे .

दिन की रौशनी में भी मुझे एक अजीब सा डर लगने लगा. अचानक वही तेज गंध फिर से आने लगी , गौर से उन सबको देखा , सबके चेहरे थोड़े सफ़ेद से नज़र आये , सबकी आँखों में वही चमक , जो तांगेवाले के आँख में थी , उस तांगेवाले के याद आई.. स्टेशन के उस पार देखा तो उसी लैम्प पोस्ट के पास वो खड़ा था और मेरी ओर ही देख रहा था .

मैंने फिर गौर से बूढ़े की ओर देखा , मुझे लगा बेचारा बहुत ही गरीब है , कुछ मदद कर देनी ही चाहिए . मैंने पुछा. "कुछ पैसे चाहिए बाबा ?"

बूढ़े ने कहा , "नहीं , सिर्फ चाय पिला दो . तुम मेरे बेटे की उम्र के हो ..इसलिए तुमसे ही मांग रहा हूँ" . ये सुनकर मुझे दया आ गयी . मैं स्वभाव से ही बड़ा दयालु था .

मैं ने चाय वाले से कहा , " भाई इन चारो को भी चाय पिला दो ". चाय वाले ने मुझे गौर से देखा और पुछा , "किन चारो को बाबू जी ?", मैंने पलटकर देखा तो वो चारो फिर गायब थे. मेरा दिमाग फिरने लगा .पहली बार मुझे डर लगा .मैंने चारो तरफ देखा .. मुझे पसीना आ रहा था. पता नहीं लेकिन बहुत डर लग रहा था पहली बार .

अचानक देखा तो स्टेशन के गेट से मेरा एक पुराना दोस्त बाहर निकल रहा था , मैंने उसे आवाज़ दी , "उमेश , यहाँ इधर आ , मैं राजेश हूँ नागपुर से " उसने मुझे देखा और पास आया और पुछा, "यहाँ कैसे बे ?" मैंने कहा "यार स्टील प्लांट में परचेस में मिलने आया हूँ ". वो बोला कि "मैं भी वही जा रहा हूँ , चल साथ मेरे ." मुझे बड़ी राहत मिली , मैंने चारो ओर देखा , कोई नहीं था , न बुध और न ही बूढ़े का परिवार और न ही वो तांगेवाला .

उमेश से बस बिज़नस की दोस्ती थी और अक्सर हम एक ही कस्टमर के पास मिलते थे और अपने अपने बिज़नस के लिए लड़ते थे , पर आज बहुत अच्छा लग रहा था. हम दोनों प्लांट गए और अपना अपना काम किया . मुझे आर्डर मिल गया और उमेश को भी. हमने सोचा कि रात की गाडी से वापस चले जाते है . उसे रायपुर जाना था . मैं भी वही से गाडी बदलकर नागपुर चले जाऊँगा; ऐसा मैंने सोचा . हम दोनों को ही अपने आर्डर मिल गए थे इसलिए हमने सोचा कि मार्च के आखरी बिज़नस को सेलिब्रेट कर ले. हम एक छोटे से ढाबे पर जाकर खाने पीने में लग गये.. रात के करीब १२ बजे वो ट्रेन थी . हम ११ बजे पहुंचे स्टेशन पर और अपनी टिकिट लेकर इन्तजार करने लगे प्लेटफोर्म पर .

अचानक ही थोड़ी देर बाद मुझे वही अजीब सी गंध आने लगी .मैंने पलटकर देखा तो वही बुढा अपने परिवार और उस तांगेवाले के साथ मेरे पीछे खड़ा था. मैंने चिंहुक कर अपने बगल में देखा तो मेरा दोस्त बैठे बैठे ही सो रहा था. मैंने बूढ़े को देखा ,. वो अजीब सी हंसी हंसा और मुझसे कहने लगा कि "जा रहे हो बाबू जी . हमारे साथ थोड़ी देर और समय बिता जाते ." मैंने कहा देखो , "तुम्हे अगर कुछ पैसे चाहिए तो बोलो , मैं दे देता हूँ , पर मेरा पीछा छोडो ." बूढ़े ने कहा, " हमें पैसे नहीं आप चाहिए बाबू जी . आप बड़े अच्छे लगने लगे हो हमें.. तुम तो हमारे बेटे की उम्र के हो .". कहकर बुढा रोने लगा .. मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था . मैंने बूढ़े को अपने साथ बैठने को कहा उसी बेंच पर जहाँ मेरा दोस्त बैठा था. एक तो उस छोटे से स्टेशन पर ठीक से रौशनी भी नहीं थी . मुझे अच्छा नहीं लगा रहा था , लेकिन देखा की अब चारो और वो तांगेवाला सभी रोने लगे थे. बूढ़े ने मेरा हाथ थामा . बाप रे .. कितना ठंडा हाथ था उसका . मुझे एक सिहरन सी दौड़ गयी , एक तो वो अजीब सी गंध , दूसरा ये ठंडा हाथ और फिर उन सबका रोना. मेरा दिमाग में एक अजीब सी तारी छाने लगी . मेरी आँखे मुंदियाने लगी .

अचानक ही गाडी के आने की आवाज आई , मेरा दोस्त हडबडाकर उठा और मुझे बोला , "अबे चल; ट्रेन आ गयी है ". मैं भी हडबडा कर उठा. ट्रेन को देखने के चक्कर में इन सब को भूल ही गया . ट्रेन आई , हम दोनों जाने लगे ,मेरा दोस्त चढ़ गया ट्रेन में , मैंने चढ़ने लगा तो बूढ़े ने आवाज दी, " बेटा जा रहे हमें छोड़कर" , मुझे अजीब सा लगा , मैंने सोचा कुछ और फिर जबर्दश्ती बूढ़े के हाथ में कुछ रुपये रखा और झुककर बूढ़े के पैर छूना चाहा . उन दिनों मैं हर उम्रदराज व्यक्ति के पैर छु लिया करता था.

देखा तो बुढा मुड गया था , उसके पैर उलटी दिशा में थे , मैंने सर उठाकर कहने लगा , बाबा पैर तो छूने दो , देखा तो उनका चेहरा मेरी ही तरफ था . फिर नीचे देखा तो पैर उलटी तरफ थे ..........मुझे एक गहरा झटका लगा , मैं जोर से चिल्लाया , और बेहोश हो गया . ......

थोड़ी देर बाद किसी ने मेरे चेहरे पर पानी डाला . आँखे खुली देखा तो मेरा दोस्त उमेश था. मैं गाडी में लेटा था और गाडी चल रही थी ..उमेश बोला "साले, ज्यादा पीता क्यों है , जब संभलती नहीं है ".. मैं अटक अटक कर बोला , "भूत .". वो हंसने लगा , " भूत! अबे इस दुनिया में भूत कहाँ होते है . ये सब बेकार की बाते है , तू सो जा" .... मैं फिर सो गया या बेहोश हो गया था ..

बहुत जोर जोर की आवाजे आ रही थी .. बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी आँखे खोला .. देखा तो कोई स्टेशन था. उमेश पहले ही उठ गया था ,.मुझे देख कर कहा .. "उठ जा राजेश... सुबह हो गयी" , मैंने पुछा ,"यार ,कौन सा स्टेशन है " . उसने कहा, " रायपुर है .. मैं उतर रहा हूँ.. तू यही से दूसरी गाडी ले ले नागपुर के लिए .. चल तुझे बिठा देता हूँ.". हम दुसरे प्लेटफोर्म पर पहुंचे .वहां एक गाडी थी जो नागपुर जा रही थी . उमेश जाकर टिकिट , अखबार और चाय ले आया .

मेरी हालत कुछ ठीक नहीं थी .. कल का ही असर था. उमेश ने टीटी से बात करके एक जगह दिलवा दी .. मैं अपनी सीट पर बैठ गया ..उमेश चला गया .. मैंने चाय पी. और अखबार खोला .. तीसरे पेज पर एक खबर पर मेरी निगाह रुक गयी .. मेरी सांस अटक कर रह गयी .. उस खबर में उस बूढ़े का परिवार का फोटो उस तांगेवाले के साथ था. जल्दी जल्दी खबर पढ़ी तो सन्न रहा गया , वो पूरा परिवार उस तांगेवाले के साथ टिटलागढ़ के पास एक एक्सिडेंट में दो दिन पहले ही मारे जा चुके थे. सबकी लाशें मिल गयी थी लेकिन उसके तीसरे बेटे के लाश अब तक नहीं मिली थी ...तस्वीर गौर से देखा तो उसके बेटे का भी एक फोटो दिया हुआ था जिसकी लाश अब तक नहीं मिली थी ...उसका चेहरा मुझसे मिलता था ......मैं सिहर कर रह गया ....... !!

मैं पत्थर सा बन कर रह गया ..तो क्या मैंने शापित आत्माओ के साथ टिटलागढ़ की रात काटी थी ..मुझे अब सब कुछ समझ में आ रहा था., वो तेज गंध शमशान में जल रही लाशो की होती है , जो उस वक्त कल मुझे आ रही थी .....वो सफ़ेद चेहरे लाशो के होते है .... वो चमकीली आँखे भूतो की होती है ... और भारत में ये कहा जाता है कि भूतो के पैर उलटी तरफ होते है ..अब सब कुछ समझ आ रहा था और मैं तेजी से डर के मारे कांप रहा था ...

Mr.Verma (my friend's uncle)

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I myself strongly believe in ghosts and spirits and I do believe in God too. The story I am going to tell you today is not my experience but I have heard this story from my friend and seriously after listening to this, I got goose bumps and chills so that is why I am sharing this story with you. Now read on carefully.

This story is of Mr.Verma (my friend's uncle) whom I do not know pe
rsonally and this story is 8 or 10 years old. Mr. Verma is a government officer and was living in a village in Himachal Pradesh in India at that time with his family. His office was 10 or 12 kilometers away from his home and he used to travel by his bike. It was the month of March and you all know that it is a closing time of old financial year and starting of new financial year, so government officers have to work late nights to complete pending logs and files.

It was around 11.30 in the night when he came out of the office and it was raining heavily. Uncle always used to travel by highway but that day, he wanted to take a shortcut because it was raining and he wanted to reach home as soon as possible. That shortcut was a kind of haunted road but he thought that nothing will happen and these all are just rumors and nothing else. It was a chilling windy winter night and rain on top of that. The trees were shaking due to the force of wind and were making horrible noises. Uncle was frightened and started chanting Sri Hanuman Chalisa (an Indian holy song) and safely traveled some kilometers.

After traveling some more kilometers, he forgot that he was frightened and noticed that it is just about to be morning as darkness was getting off. He thought that now he is safe as it is going to be morning but suddenly he looked at his watch and noticed that it was 12.45 am. He said "Oh god how come it is 12.45 a.m. right now as I thought that daylight is just about to come".

Then he noticed that it was not going to be morning but it was moonlight that was confusing him with daylight and then he relaxed and sped up his bike. After approximately 10 minutes of driving, he noticed a lady on the right side of the road asking for a lift. At first, he thought that she is in real need and then suddenly something strike his mind and he again sped up his bike. Again after 5 minutes of driving, he saw the same lady asking for the lift. Mr. Verma said "oh shit how come she is here she was around half a kilometer back. Uncle's body started shaking with fear and he just forgot about God and thought that this is something unusual. He again just sped up his bike, as he wanted to reach home as soon as possible before anything bad happens to him.

After sometime, again he noticed the same lady asking for the lift and this time, she screamed for help saying "PLEASE HELP ME". I am lost here. Please stop. She was wearing a red saree with heavy jewelry but uncle did not stop and said that "I am going to die today". That lady started running with the bike at almost the same pace and starting saying please stop and take me with you. I wan to go home. Uncle was driving the bike at a speed of 60 to 70 km/hour at that time and was shivering like hell. Uncle sped up but it was not possible as there was some strong force from behind which was stopping him from racing his bike. The lady started laughing and crying at the same time and said "I died at the same road many years back and this is your time today". Her face changed from sweet and innocent to scary and weird. Uncle Verma was so horrified that he started shivering but had not lost his consciousness. He just changed the last gear and moved his arm on the accelerator until the end. He never looked back to see her. She followed Uncle for another 2 kilometers or so and after that, he reached a place where some guards were sitting lighting up campfire. Uncle just stopped the bike in front of them and had some water from them. After having water, he told them what happened to him and they all said that "You have done a very good thing by not stopping the bike because if you would have stopped the bike, you would not have been alive by now." The oldest guard told the uncle that "I am living over here for the last 10 years and in these 10 years, I have heard about more than 50 accidents of cars and bikes on that haunted road". He told uncle that "God is with you that is why you are alive".

So friends, I believe in ghosts, spirits, and paranormal as I believe in the Almighty God. I have heard about many ghost stories of same type here in India from many of my friends. I will share with you these stories in my upcoming hubs. The most interesting and chilling roadside story, which will shake your spine is of one 39-year-old driver who has faced these horror incidents many times in his life. Bye, bye up until then. Take care.........

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