यह गांव है राजस्थान के जैसलमेर जिले का कुलधरा गांव| कहा जाता है कि यह
गांव पिछले दो सौ सालों से रूहानी ताकतों के कब्जे में हैं, कभी एक हंसता
खेलता यह गांव आज एक खंडहर में तब्दील हो चुका है| प्रशासन ने इस गांव की
सरहद पर एक फाटक बनवा दिया है जिसके पार दिन में तो सैलानी घूमने आते रहते
हैं लेकिन रात में इस फाटक को पार करने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता|
जैसे -जैसे लोगों के कदम इस गांव के भीतर बढ़ते हैं यहां का तापमान लगातार
कम होता जाता है यहां तक कि कई जगह यह तापमान माइनस में भी पहुंच जाता है|
इन खंडहरों की दीवारों से आने वाली तरह-तरह की आवाजें रौंगटे खड़े करने
वाली होती हैं| ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये आवाजें हमें वहां से चले जाने
का आदेश दे रही हैं|
लोग कहते हैं कि इस गांव में भूतों का बसेरा है| पिछले दो सौ सालों से यह
गांव किसी श्राप और बद्दुआ में फंसा हुआ है| ऐसा कहा जाता है कि गांव का
यह वीराना एक दीवान के पाप के कारण है, यह गांव आज तक नहीं बस पाया उसके
पीछे पालीवाल ब्राह्मणों का श्राप है जो उन्होंने राजा के पाप करने पर दिया
था|
क्या है इस वीराने की कहानी:
आज एक वीरान खंडहरों में तब्दील हो चुका गांव बारहवीं शताब्दी में पालीवाल
ब्राह्मणों की राजधानी हुआ करता था, जिसकी सम्रद्धि के चर्चे पूरे राजस्थान
में थे|यहां की इमारतों की वास्तुकला मन को मोहने वाली हुआ करती थी, आज भी
यहां के खंडहरों की नक्कासी देखकर उन पालीवाल ब्राह्मणों की सम्रद्धि का
अंदाज़ा लगाया जा सकता है| कहा जाता है कि पालीवाल ब्राह्मणों की यह
सम्रद्धि जैसलमेर के दीवान सालेह सिंह को फूटी आंख ना भाई और उसने कुलधरा
सहित आस पास के चौरासी गांवों पर भारी कर ठोक दिया|
पालीवाल ब्राह्मणों ने इसका खुलकर विरोध किया| लेकिन अन्याय यहीं ख़त्म
नहीं हुआ, अय्यास सालेह सिंह की नज़र कुलधरा की एक बहुत ही खूबसूरत लड़की
पर पड़ी और वह उसे अपने हरम में लाने के लिए कुलधरा पर जोर देने लगा, लेकिन
पालीवाल ब्राह्मणों ने साफ़ इनकार कर दिया, गुस्साए सालेह सिंह के
अत्याचार बढ़ते गए|
एक दिन पालीवाल ब्राह्मणों ने तय किया कि वे इस गांव को छोड़कर कहीं और चले
जायेंगे और एक रात वे गांव छोड़कर चले गए और जाते- जाते श्राप दे गए कि अब
यह गांव कभी नहीं बसेगा| उसी श्राप के कारण आज कुलधरा का यह हाल है|